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Tuesday, May 5, 2020

Gayatri Mantra



गायत्री मंत्र

अस्य श्री गायत्री मंत्रस्य
विश्वामित्र ऋषिः 
गायत्री छन्दः
सविता देवता जपोपनयने विनियोगः


ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्.

गायत्री मंत्र ऋग्वेद के छंद 'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्' 3.62.10 और  यजुर्वेद के मंत्र  ॐ भूर्भुवः स्वः  से मिलकर बना है .

ऋग्वेद का गायत्री छंद और गायत्री मंत्र में अंतर है -
ऋग्वेद के छंद
'तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्'
यजुर्वेद के मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः


ऋग्वेद के इस मंत्र में सविता-सूर्य-प्रकाश-ज्ञान की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है।

यजुर्वेद का मंत्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' ज्ञान के सम्पूर्ण धरातल को स्पष्ट करता है. इसलिए किसी ब्रह्म तत्त्व को पूर्ण रूप से जानने वाले ऋषि ने विश्वामित्र ऋषि के गायत्री छंद में लिखे मंत्र के साथ यजुर्वेद  के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः को जोड़कर मानव जाति को एक अद्भुत मंत्र प्रदान किया. इस गायत्री मंत्र में ऋग्वेद से लिया भाग गायत्री छंद में है इसलिए इसका नाम गायत्री पड़ा. इसे श्री गायत्री देवी के स्त्री रुप मे भी पुजा जाता है। 'गायत्री' एक छन्द भी है

ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में एक है गायत्री छंद। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक्, अनुष्टुप्, बृहती, विराट, त्रिष्टुप् और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में त्रिष्टुप् को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंदों की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। अतएव जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया।

इसके ऋषि विश्वामित्र हैं और देवता सविता हैं


ऋग्वेद के छंद तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् । इसका अर्थ देखिये आप स्वय जानंगे कि यह केवल निदेश है, मार्ग दर्शन है.

          तत् : उस
          सवितु: : सविता-सूर्य- प्रकाशक- ज्ञान
          वरेण्यं : वरण करने योग्य
          भर्ग: : शुद्ध विज्ञान स्वरूप
          देवस्य : देव का
          धीमहि : हम ध्यान करें
          धियो : बुद्धि को
          य: : जो
          न: : हमारी
         प्रचोदयात : शुभ कार्यों में प्रेरित करे

यजुर्वेद के मंत्र ॐ भूर्भुवः स्वः

          भू का अर्थ है स्थूल,पृथ्वी,शरीर 
          भुव का अर्थ है चिन्तन  
          स्व का अर्थ है सुख -प्रसन्नता

अस्य श्री गायत्री मन्त्र विश्वामित्र ऋषि गायत्री छंद सविता देवता आत्मसाक्षातकार  अर्थे जपे विनियोग |

ॐ : सर्वरक्षक परमात्मा

भू:प्राणों से प्यारा      /     मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला  /     पृथ्वी , स्थूल 
भुव:दुख विनाशक /     दुख़ों का नाश करने वाला                /     चिन्तन  ,  सूक्ष्म
स्व:सुखस्वरूप है /     सुख़ प्रदाण करने वाला                 /     सुख -प्रसन्नता , कारण
तत् :उस        /     वह                                  /     उस
सवितु:उत्पादक, प्रकाशक, प्रेरक   /   सूर्य की भांति उज्जवल     /  सविता-सूर्य- प्रकाशक- ज्ञान
वरेण्य :वरने योग्य              /     सबसे उत्तम              /     वरण करने योग्य
भुर्ग: :शुद्ध विज्ञान स्वरूप का      /     कर्मों का उद्धार करने वाला   /     शुद्ध विज्ञान स्वरूप
देवस्य :देव के                   /     प्रभु                     /     देव का
धीमहि :हम ध्यान करें         /     आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)     /     हम ध्यान करें
धियो :बुद्धियों को                /     बुद्धि, यो                /     बुद्धि को
य: : जो                      /     जो                      /     जो
न: :  हमारी                   /     हमारी,                   /     हमारी
प्रचोदयात : शुभ कार्यों में प्रेरित करें /     हमें शक्ति दें          /     शुभ कार्यों में प्रेरित करे

Another meaning

Bhu  (Earth, Consciousness of the Physical Plane), the world in which we live . it covers Mooladhar and swadhistan manipur chakra )

Bhuvar  (Antariksha,The Intermediate Space,Consciousness of Prana) it is the space in which material worlds exist (anatha , vishudhi chakra )

Swar (Sky, Heaven, Consciousness of the Divine Mind),highest planes of existance  (ajna and sahasrara chakra)

Dhimahi we meditate upon ,I Meditate on   - ( so what do we meditate upon )


Tat Bharga       (what we have to meditate upon )that brilliance or  Divine Effulgence, - (so what kind of brilliance )
Vareniyam Bharga  highest kind of brilliance - ( whose brilliance is this )

Devasya         of the divine entity - ( which divine entity) - ( of which divine entity )

Tat Savitu (Savitri, Divine Essence of the Sun) which is the most Adorable, -( which give birth to life )  - ( so why do we meditate on it )

Prachodyat     so that it may propel or drive - ( so drive what )


Nah Dhiyah     our minds (our dhi) or our Intelligence (Spiritual Consciousness). 

in which direction it propel - thats from  bhu bhuva suvaha
                                         from gross to subtle and subtle to causal
                                         from downward to upward
                                         from mooladhar to sahasrara  
Common mistakes -

bhur , bhargo its bha not ba

Devasyo  its da not dha

Dhimahi  its dhi  धी not di दी

Dhiyo  its dhi  धी not di दी

the word स्व: Swaha its  Sa   not Su सु this is very common mistake  all most all the person do


ॐ तत्त सत्त